डॉक्टर का तबादला, स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही पर प्रशासन का कोड़ा।

मोहन प्रताप सिंह
दैनिक राजधानी से जनता तक, सूरजपुर/भटगांव:– 9 अगस्त को सूरजपुर जिले के भटगांव सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में घटा यह वाकया किसी भी संवेदनशील समाज को शर्मसार करने के लिए काफी है। प्रसूता कुन्ती पण्डो को चार घंटे तक असहनीय प्रसव पीड़ा में तड़पते रहने के बाद अस्पताल के ठंडे, गंदे फर्श पर बच्चे को जन्म देना पड़ा।
उस वक्त अस्पताल में न डॉक्टर था, न नर्स, न कोई वार्ड ब्वॉय, पूरा स्वास्थ्य तंत्र गायब था और प्रसव कराने की जिम्मेदारी मजबूर परिजनों के कंधों पर आ गई। खून के धब्बे पोंछते परिवार की तस्वीरें सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने के लिए काफी थीं।
यह घटना मीडिया में सुर्खियां बनी और जनता के गुस्से ने प्रशासन को झकझोर दिया। नतीजा महज 48 घंटे के भीतर तीन जिम्मेदारों पर गाज गिर गई और विभाग ने सख्त कदम उठाए।
जांच ने खोली पोल, साबित हुई घोर लापरवाही
कलेक्टर सूरजपुर और संभागीय संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं सरगुजा के अनुमोदन पर गठित जिला स्तरीय जांच समिति ने 11 अगस्त को अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में साफ लिखा गया, घटना के वक्त ड्यूटी पर मौजूद रहने वाले स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी से नदारद थे, जिसके चलते प्रसूता को फर्श पर प्रसव करना पड़ा।
प्रशासन की कार्रवाई
विक्टोरिया केरकेट्टा (RHO, महिला) को कार्य में घोर लापरवाही पर तत्काल निलंबन, मुख्यालय जिला चिकित्सालय सूरजपुर में अटैच किया गया।
शीला सोरेन (स्टाफ नर्स) को बिना अनुमति अनुपस्थित और कर्तव्य की अनदेखी पर निलंबन, मुख्यालय जिला चिकित्सालय सूरजपुर में अटैच किया गया।
डॉ. साक्षी सोनी (अनुबंधित चिकित्सा अधिकारी) को ड्यूटी से गायब रहने पर भटगांव से हटाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भैयाथान में पदस्थ किया गया।
निलंबन अवधि में दोनों कर्मचारियों को नियमानुसार जीवन निर्वाह भत्ता मिलेगा, जबकि डॉक्टर का तबादला आदेश तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।
प्रशासन का संदेश, बर्दाश्त नहीं होगी लापरवाही
स्वास्थ्य विभाग की इस त्वरित कार्रवाई ने यह साफ कर दिया है कि मातृ-शिशु सेवाओं में किसी भी प्रकार की लापरवाही को अब नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।
लेकिन सवाल भी उतने ही तीखे हैं कि सरकारी अस्पताल में प्रसव के समय जिम्मेदार कर्मचारी नदारद क्यों थे?, क्या कार्रवाई सिर्फ निचले स्तर तक ही सीमित रहेगी, या बड़े अधिकारियों पर भी गाज गिरेगी?, क्या यह कार्रवाई भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए पर्याप्त है?
गांव की सच्चाई, कागज़ी सुविधाओं की हकीकत
भटगांव की यह घटना केवल एक प्रसूता की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे की असलियत है। जहां सरकारी कागजों में मातृ-शिशु सेवाएं सुलभ और संपूर्ण दिखती हैं, वहीं जमीनी स्तर पर हालात इतने बदतर हैं कि एक मां को जीवन का सबसे संवेदनशील क्षण अस्पताल के फर्श पर गुजारना पड़ा।
जनता की नजर आगे पर
भटगांव कांड में हुई कार्रवाई को लोग न्याय की पहली सीढ़ी मान रहे हैं, लेकिन अब निगाहें इस बात पर हैं कि क्या यह केवल आग बुझाने की औपचारिकता है, या सचमुच स्वास्थ्य तंत्र में सुधार की शुरुआत।
जनता की उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सिर्फ छोटे कर्मचारियों पर ही नहीं, बल्कि उन सभी पर कार्रवाई होगी जिनकी लापरवाही ने यह शर्मनाक हालात पैदा किए।
